आए अगर क़यामत तो धज्जियाँ उड़ा दें
फिरते हैं जुस्तुजू में फ़ित्ने तिरी गली के
रसा रामपुरी
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बअ'द-ए-फ़ना भी ख़ैर से तन्हा नहीं हैं हम
बंदों से छुट गए तो फ़रिश्तों में आ मिले
रसा रामपुरी
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बड़ी ही धूम से दावत हो फिर तो ज़ाहिद की
ये मय जो चार घड़ी को हलाल हो जाए
रसा रामपुरी
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वो ख़ुश किसी के साथ हैं ना-ख़ुश किसी के साथ
हर आदमी की बात है हर आदमी के साथ
रसा रामपुरी
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