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राग़िब मुरादाबादी शायरी | शाही शायरी

राग़िब मुरादाबादी शेर

3 शेर

हक़ीक़त को छुपाया हम से क्या क्या उस के मेक-अप ने
जिसे लैला समझ बैठे थे वो लैला की माँ निकली

राग़िब मुरादाबादी




जिसे कहते हो तुम इक क़तरा-ए-अश्क
मिरे दिल की मुकम्मल दास्ताँ है

राग़िब मुरादाबादी




ख़ुदा कातिब की सफ़्फ़ाकी से भी महफ़ूज़ फ़रमाए
अगर नुक़्ता उड़ा दे नाम-ज़द नामर्द हो जाए

राग़िब मुरादाबादी