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क़मर जमील शायरी | शाही शायरी

क़मर जमील शेर

4 शेर

अपनी नाकामियों पे आख़िर-ए-कार
मुस्कुराना तो इख़्तियार में है

क़मर जमील




एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
फूल बनने के इंतिज़ार में है

क़मर जमील




हम सितारों की तरह डूब गए
दिन क़यामत के इंतिज़ार में है

क़मर जमील




या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
या बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है

क़मर जमील