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पीर शेर मोहम्मद आजिज़ शायरी | शाही शायरी

पीर शेर मोहम्मद आजिज़ शेर

9 शेर

जब उस ने मिरा ख़त न छुआ हाथ से अपने
क़ासिद ने भी चिपका दिया दीवार से काग़ज़

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
किसी के रुख़ के तसव्वुर में दिन तमाम किया

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




कुंदनी रंग का मैं कुश्ता हूँ
क्यूँ न हो मेरी ज़ाफ़रानी ख़ाक

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
ख़ाक के पुतले का है ख़ाक का पुतला आशिक़

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




नाख़ुन का रंग सीना-ख़राशी से ये हुआ
सुर्ख़ी शफ़क़ से आती है जैसे हिलाल पर

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
साक़ी तिरे हाथों से जो साग़र नहीं मिलता

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
अभी सो रहने दो कुछ रात गुज़रे तो जगा लेना

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल हम ने सुब्ह-ओ-शाम किया

पीर शेर मोहम्मद आजिज़




ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्खा था मुझ को हिज्र में
मौत ने दिखला दिया आ कर मसीहाई का रंग

पीर शेर मोहम्मद आजिज़