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ओबैदुर् रहमान शायरी | शाही शायरी

ओबैदुर् रहमान शेर

18 शेर

आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
किस किस घर का ज़िक्र करूँ में किस किस के सदमात लिखूँ

ओबैदुर् रहमान




अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
दर्द एहसास का सीने में दबाने से उठा

ओबैदुर् रहमान




बच्चों को हम न एक खिलौना भी दे सके
ग़म और बढ़ गया है जो त्यौहार आए हैं

ओबैदुर् रहमान




दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
कहानी और है कुछ दास्तान से पहले

ओबैदुर् रहमान




घटती बढ़ती रही परछाईं मिरी ख़ुद मुझ से
लाख चाहा कि मिरे क़द के बराबर उतरे

ओबैदुर् रहमान




हमें हिजरत समझ में इतनी आई
परिंदा आब-ओ-दाना चाहता है

ओबैदुर् रहमान




हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
और इस के बा'द मर जाने का सपना देख लेना था

ओबैदुर् रहमान




जब धूप सर पे थी तो अकेला था में 'उबैद'
अब छाँव आ गई है तो सब यार आए हैं

ओबैदुर् रहमान




जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
वहीं पहुँच के हयात इक ख़याल-ए-ख़ाम हुई

ओबैदुर् रहमान