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निशांत श्रीवास्तव नायाब शायरी | शाही शायरी

निशांत श्रीवास्तव नायाब शेर

7 शेर

ब-ज़ाहिर दश्त की जानिब तो बढ़ता जा रहा है
मगर सब रास्ते भी याद करता जा रहा है

निशांत श्रीवास्तव नायाब




चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने
सुब्हें कितनी उदास रहती हैं

निशांत श्रीवास्तव नायाब




एक भी पत्थर न आया राह में
नींद में हम उम्र भर चलते रहे

निशांत श्रीवास्तव नायाब




हिफ़ाज़त हर किसी की वो बड़ी ख़ूबी से करता है
हवा भी चलती रहती है दिया भी जलता रहता है

निशांत श्रीवास्तव नायाब




जुनूँ को ढाल बनाया तो बच गए वर्ना
ये ज़िंदगी हमें मजबूर कर भी सकती थी

निशांत श्रीवास्तव नायाब




मैं एक पल में अँधेरे से हार जाऊँगा
तमाम उम्र चराग़ों के बीच गुज़री है

निशांत श्रीवास्तव नायाब




रात अब अपने इख़्तिताम पे है
एहतिरामन दिए बुझा दीजे

निशांत श्रीवास्तव नायाब