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मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता शायरी | शाही शायरी

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता शेर

15 शेर

अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
हयात मिलती है जब इंतिक़ाल होता है

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




देखो निगाह-ए-शौक़ से मेरी तरफ़ मुझे
ये मुद्दआ' है और कोई मुद्दआ' नहीं

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
गिर पड़ेगी पाँव पर दस्तार-ए-मीना देखना

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
वो बे-दहन नज़र आया में बे-ज़बाँ ठहरा

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिरा पा-ए-नज़र पड़ता है ज़ंजीर-ए-गुलिस्ताँ पर

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता




मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
अभी देने लगे मिरी तरह तुम को दुआ करवट

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता