अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
हयात मिलती है जब इंतिक़ाल होता है
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
देखो निगाह-ए-शौक़ से मेरी तरफ़ मुझे
ये मुद्दआ' है और कोई मुद्दआ' नहीं
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
गिर पड़ेगी पाँव पर दस्तार-ए-मीना देखना
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
वो बे-दहन नज़र आया में बे-ज़बाँ ठहरा
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिरा पा-ए-नज़र पड़ता है ज़ंजीर-ए-गुलिस्ताँ पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
अभी देने लगे मिरी तरह तुम को दुआ करवट
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता