मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
क्यूँ न दिल से दूँ दुआएँ अपने ग़ैन ओ मीम को
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
मुलाक़ात है हम से तुम से कभी की
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
पानी बरस रहा है जमे हैं घटा के रंग
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मुँह नज़र आता नहीं आईना-ए-तस्वीर में
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
सरिश्क-ए-चश्म दिखाते हैं गर्मियाँ अपनी
कमी पे जब अरक़-ए-इंफ़िआ'ल होता है
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
क्यूँ न मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता