क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
तुर्रा-ए-काकुल-ए-पेचां रुख़-ए-नूरानी पर
चश्मा-ए-आईना में साँप सा लहराता है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
2 शेर
क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
तुर्रा-ए-काकुल-ए-पेचां रुख़-ए-नूरानी पर
चश्मा-ए-आईना में साँप सा लहराता है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह