इश्क़ की नाव पार क्या होवे
जो ये कश्ती तरे तो बस डूबे
मीर सज्जाद
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मैं ने जाना था क़लम-बंद करेगा दो हर्फ़
शौक़ के लिखने का 'सज्जाद' ने खोला दफ़्तर
मीर सज्जाद
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