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महबूब राही शायरी | शाही शायरी

महबूब राही शेर

1 शेर

अल्ताफ़-ओ-करम ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब कुछ भी नहीं है
था पहले बहुत कुछ मगर अब कुछ भी नहीं है

महबूब राही