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महबूब अज़मि शायरी | शाही शायरी

महबूब अज़मि शेर

2 शेर

दिल और शम्अ दोनों बराबर हैं सोख़्ता
उठता है किस जगह से धुआँ देखते रहो

महबूब अज़मि




मौक़ूफ़ है क्यूँ हश्र पे इंसाफ़ हमारा
क़िस्सा जो यहाँ का है तो फिर तय भी यहीं हो

महबूब अज़मि