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लम्बा सफ़र है सूद-ओ-ज़ियाँ देखते रहो | शाही शायरी
lamba safar hai sud-o-ziyan dekhte raho

ग़ज़ल

लम्बा सफ़र है सूद-ओ-ज़ियाँ देखते रहो

महबूब अज़मि

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लम्बा सफ़र है सूद-ओ-ज़ियाँ देखते रहो
तुम इंक़लाब-ए-कौन-ओ-मकाँ देखते रहो

आँखें करोगे बंद तो उट्ठेंगी उँगलियाँ
दौर-ए-बहार हो कि ख़िज़ाँ देखते रहो

आईना दिल का है जो शिकस्ता तो क्या हुआ
तुम अब कमाल-ए-शीशा-गराँ देखते रहो

आसेब की मिसाल हैं ये रास्ते तमाम
जाए भटक के कौन कहाँ देखते रहो

दिल और शम्अ दोनों बराबर हैं सोख़्ता
उठता है किस जगह से धुआँ देखते रहो