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मीराजी शायरी | शाही शायरी

मीराजी शेर

3 शेर

ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें
ग़म भी रास आया दिल को और ही कुछ सामान करें

मीराजी




'मीर' मिले थे 'मीरा-जी' से बातों से हम जान गए
फ़ैज़ का चश्मा जारी है हिफ़्ज़ उन का भी दीवान करें

मीराजी




नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

मीराजी