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मर्दान अली खां राना शायरी | शाही शायरी

मर्दान अली खां राना शेर

49 शेर

आख़िर हुआ है हश्र बपा इंतिज़ार में
सुब्ह-ए-शब-ए-फ़िराक़ हुई मारवाड़ में

मर्दान अली खां राना




अबरू आँचल में दुपट्टे के छुपाना है बजा
तुर्क क्या म्यान में रखते नहीं तलवारों को

मर्दान अली खां राना




अश्क-ए-हसरत दीदा-ए-दिल से हैं जारी इन दिनों
कार-ए-तूफाँ कर रही है अश्क-बारी इन दिनों

मर्दान अली खां राना




बदन में ज़ख़्म नहीं बद्धियाँ हैं फूलों की
हम अपने दिल में इसी को बहार जानते हैं

मर्दान अली खां राना




बदन पर बार है फूलों का साया
मिरा महबूब ऐसा नाज़नीं है

मर्दान अली खां राना




दर्द-ए-सर है तेरी सब पंद-ओ-नसीहत नासेह
छोड़ दे मुझ को ख़ुदा पर न कर अब सर ख़ाली

मर्दान अली खां राना




दिल को लगाऊँ और से मैं तुम को छोड़ दूँ
फ़िक़रा है ये रक़ीब का और झूठ बात है

मर्दान अली खां राना




दिया वो जो न था वहम-ओ-गुमाँ में
भला मैं और क्या माँगूँ ख़ुदा से

मर्दान अली खां राना




दुनिया में कोई इश्क़ से बद-तर नहीं है चीज़
दिल अपना मुफ़्त दीजिए फिर जी से जाइए

मर्दान अली खां राना