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मजीद अख़्तर शायरी | शाही शायरी

मजीद अख़्तर शेर

4 शेर

करम के बाब में अपनों से इब्तिदा किया कर
ज़रा सी बात पे दिल को न यूँ बुरा किया कर

मजीद अख़्तर




रात भी चाँद भी समुंदर भी
मिल गए कितने ग़म-गुसार मुझे

मजीद अख़्तर




सारा हिसाब-ए-जान-ओ-दिल रक्खा है तेरे सामने
चाहे तो दे अमाँ मुझे चाहे तो दरगुज़र न कर

मजीद अख़्तर




ज़रा ठहरो कि पढ़ लूँ क्या लिखा मौसम की बारिश ने
मिरी दीवार पर लिखती रही है दास्ताँ वो भी

मजीद अख़्तर