धीमा धीमा दर्द सुहाना हम को अच्छा लगता था
दुखते जी को और दुखाना हम को अच्छा लगता था
कृष्ण अदीब
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पुश्त पर क़ातिल का ख़ंजर सामने अंधा कुआँ
बच के जाऊँ किस तरफ़ अब रास्ता कोई नहीं
कृष्ण अदीब
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शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत है
गूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है
कृष्ण अदीब
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