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ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन शायरी | शाही शायरी

ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन शेर

3 शेर

गालियाँ ग़ैर से सुनाते हो
हाँ मियाँ और तुम से क्या होगा

ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन




मैं दर-गुज़रा साहिब-सलामत से भी
ख़ुदा के लिए इतना बरहम न हो

ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन




सुब्ह गर सुब्ह-ए-क़यामत हो तो कुछ पर्वा नहीं
हिज्र की जब रात ऐसी बे-क़रारी में कटी

ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन