हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब
मौज-ए-गुल भी अब के दोज़ख़ की हवा से कम न थी
ख़याल अमरोहवी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
1 शेर
हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब
मौज-ए-गुल भी अब के दोज़ख़ की हवा से कम न थी
ख़याल अमरोहवी