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कलीम उस्मानी शायरी | शाही शायरी

कलीम उस्मानी शेर

2 शेर

है ज़ेब-ए-गुलू कब से मिरे दार का फंदा
मुजरिम हूँ अगर मैं तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

कलीम उस्मानी




जब किसी ने क़द ओ गेसू का फ़साना छेड़ा
बात बढ़ के रसन-ओ-दार तक आ पहुँची है

कलीम उस्मानी