EN اردو
जावेद नदीम शायरी | शाही शायरी

जावेद नदीम शेर

4 शेर

इक न इक दिन तो मुसख़्ख़र उस को होना है 'नदीम'
वो ख़लाओं का मकीं है नूर की रफ़्तार मैं

जावेद नदीम




जो रहनुमा थे मेरे कहाँ हैं वो नक़्श-ए-पा
मंज़िल पे छोड़ता था जो रस्ता किधर गया

जावेद नदीम




कौन सुनता है यहाँ पस्त-सदाई इतनी
तुम अगर चीख़ के बोलो तो असर भी होगा

जावेद नदीम




ये किस के आसमाँ की हदों में छुपा हूँ मैं
अपनी ज़मीं से उठ के कहाँ आ गया हूँ मैं

जावेद नदीम