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जावेद अनवर शायरी | शाही शायरी

जावेद अनवर शेर

8 शेर

अजीब सानेहा गुज़रा है इन घरों पे कोई
कि चौंकता ही नहीं अब तो दस्तकों पे कोई

जावेद अनवर




बे-तुकी रौशनी में पराए अंधेरे लिए
एक मंज़र है तेरे लिए एक मेरे लिए

जावेद अनवर




हर एक हद से परे अपना बोरिया ले जा
बदी का नाम न ले और नेकियों से निकल

जावेद अनवर




जो दिन चढ़ा तो हमें नींद की ज़रूरत थी
सहर की आस में हम लोग रात भर जागे

जावेद अनवर




कोई कहानी कोई वाक़िआ सुना तो सही
अगर हँसा नहीं सकता मुझे रुला तो सही

जावेद अनवर




निकल गुलाब की मुट्ठी से और ख़ुशबू बन
मैं भागता हूँ तिरे पीछे और तू जुगनू बन

जावेद अनवर




शाम प्यारी शाम उस पर भी कोई दर खोल दे
शाख़ पर बैठी हुई है एक बेघर फ़ाख़्ता

जावेद अनवर




तुझे मैं ग़ौर से देखूँ मैं तुझ से प्यार करूँ
ऐ मेरे बुत तू मिरे बुत-कदों से बाहर आ

जावेद अनवर