कितने बन-बास लिए फिर भी तिरे साथ रहे
हम ने सोचा ही नहीं तुझ से जुदा हो जाना
इशरत रूमानी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
रफ़्ता रफ़्ता ज़ेहन के सब क़ुमक़ुमे बुझ जाएँगे
और इक अंधे नगर का रास्ता रह जाएगा
इशरत रूमानी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |