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इशरत रूमानी शायरी | शाही शायरी

इशरत रूमानी शेर

2 शेर

कितने बन-बास लिए फिर भी तिरे साथ रहे
हम ने सोचा ही नहीं तुझ से जुदा हो जाना

इशरत रूमानी




रफ़्ता रफ़्ता ज़ेहन के सब क़ुमक़ुमे बुझ जाएँगे
और इक अंधे नगर का रास्ता रह जाएगा

इशरत रूमानी