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इक़बाल सफ़ी पूरी शायरी | शाही शायरी

इक़बाल सफ़ी पूरी शेर

4 शेर

चश्म-ए-साक़ी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मयख़ाने का

इक़बाल सफ़ी पूरी




कौन जाने कि इक तबस्सुम से
कितने मफ़्हूम-ए-ग़म निकलते हैं

इक़बाल सफ़ी पूरी




कोई समझाए कि क्या रंग है मयख़ाने का
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का

इक़बाल सफ़ी पूरी




मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया
जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी