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इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी शायरी | शाही शायरी

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी शेर

5 शेर

दर्द की सारी तहें और सारे गुज़रे हादसे
सब धुआँ हो जाएँगे इक वाक़िआ रह जाएगा

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी




इक मुसलसल दौड़ में हैं मंज़िलें और फ़ासले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी




जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे
बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी




फिर उस के ब'अद तअल्लुक़ में फ़ासले होंगे
मुझे सँभाल के रखना बिछड़ न जाऊँ मैं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी




वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं
मगर ये दिल को क्या हुआ क्यूँ बुझ गया पता नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी