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हनीफ़ नज्मी शायरी | शाही शायरी

हनीफ़ नज्मी शेर

2 शेर

अगर जहाँ में कोई आइना नहीं तेरा
तो फिर तुझी को तिरे रू-ब-रू करूँगा मैं

हनीफ़ नज्मी




वो इक जगह न कहीं रह सका और उस के साथ
किराया-दार थे हम भी मकाँ बदलते रहे

हनीफ़ नज्मी