तुम्हारा नक़्श इन आँखों से धुलता भी तो कैसे
कि दरिया में वो पहली सी रवानी भी कहाँ थी
हामिद ज़हूर
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तुम्हारा नक़्श इन आँखों से धुलता भी तो कैसे
कि दरिया में वो पहली सी रवानी भी कहाँ थी
हामिद ज़हूर