कितने ग़म हैं जो सर-ए-शाम सुलग उठते हैं
चारा-गर तू ने ये किस दुख की दवा भेजी है
हामिद सरोश
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मैं ने भेजी थी गुलाबों की बशारत उस को
तोहफ़तन उस ने भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा भेजी है
हामिद सरोश
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