आगे निकल गए थे ज़रा अपने-आप से
हम को 'हबीब' ख़ुद की तरफ़ लौटना पड़ा
हबीब हैदराबादी
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'हबीब' इस ज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म से हम भी नालाँ हैं
हमें झूटे नगीनों की चमक भाती नहीं शायद
हबीब हैदराबादी
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इंसान की बुलंदी ओ पस्ती को देख कर
इंसाँ कहाँ खड़ा है हमें सोचना पड़ा
हबीब हैदराबादी
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