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फ़रहत ज़ाहिद शायरी | शाही शायरी

फ़रहत ज़ाहिद शेर

3 शेर

अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़
ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद




औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद




जिस बादल ने सुख बरसाया जिस छाँव में प्रीत मिली
आँखें खोल के देखा तो वो सब मौसम लम्हाती थे

फ़रहत ज़ाहिद