दिन तो शिकम की आग बुझाने में जाए है
शुक्र-ए-ख़ुदा कि कटती है दानिशवरों में रात
दाएम ग़व्वासी
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गुफ़्तुगू में वो हलावत वो अमल में इख़्लास
उस की हस्ती पे फ़रिश्ते का गुमाँ हो जैसे
दाएम ग़व्वासी
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