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बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान शायरी | शाही शायरी

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान शेर

5 शेर

अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं
रहम आ जाता है क्यूँ अब मुझ को अपनी आह पर

it cannot even reach my lips, it used to reach the highest skies
I feel compassion at the sorry condition of my sighs

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान




दिलबरों के शहर में बेगानगी अंधेर है
आश्नाई ढूँडता फिरता हूँ मैं ले कर दिया

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान




हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार
पामाल हो गए तिरे दामन से छूट कर

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान




लहू टपका किसी की आरज़ू से
हमारी आरज़ू टपकी लहू से

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान




सीरत के हम ग़ुलाम हैं सूरत हुई तो क्या
सुर्ख़ ओ सफ़ेद मिट्टी की मूरत हुई तो क्या

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान