दोस्त नाराज़ हो गए कितने
इक ज़रा आइना दिखाने में
बाक़ी अहमदपुरी
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सारी बस्ती में फ़क़त मेरा ही घर है बे-चराग़
तीरगी से आप को मेरा पता मिल जाएगा
बाक़ी अहमदपुरी
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सब दोस्त मस्लहत के दुकानों में बिक गए
दुश्मन तो पुर-ख़ुलूस अदावत में अब भी है
बाक़ी अहमदपुरी
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