आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल क़ुर्बान किया 
हाल को दफ़ना देते हैं हम जीने की तय्यारी में
अज़रा नक़वी
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                अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना 
वक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
अज़रा नक़वी
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                हक़ीक़तें तो मिरे रोज़ ओ शब की साथी हैं 
मैं रोज़ ओ शब की हक़ीक़त बदलना चाहती हूँ
अज़रा नक़वी
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                फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको 
मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो
अज़रा नक़वी
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