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अतीक़ अंज़र शायरी | शाही शायरी

अतीक़ अंज़र शेर

15 शेर

अश्क पलकों पे बिछड़ कर अपनी क़ीमत खो गया
ये सितारा क़ीमती था जब तलक टूटा न था

अतीक़ अंज़र




बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
मनाना दोनों ने इक दूसरे को चाहा था

अतीक़ अंज़र




दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के
तेरी याद की ख़ुश्बू दिल में जब ठहरती है

अतीक़ अंज़र




गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में
रात हम अकेलों की किस तरह गुज़रती है

अतीक़ अंज़र




ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन
जब ज़रा कसी मुट्ठी ज़िंदगी बिखरती है

अतीक़ अंज़र




इक उस की ज़ात से जब मेरा ए'तिबार उठा
तो फिर किसी पे भी आया न ए'तिबार मुझे

अतीक़ अंज़र




कहीं बुझती है दिल की प्यास इक दो घूँट से 'अनज़र'
मैं सूरज हूँ मिरे हिस्से में दरिया लिख दिया जाए

अतीक़ अंज़र




किसी ने भेजा है ख़त प्यार और वफ़ा लिख कर
क़लम से काम दिया है मुझे ख़ुदा लिख कर

अतीक़ अंज़र




मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
जुदा न जिस्मों से 'अनज़र' कभी भी साए हुए

अतीक़ अंज़र