शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
जैसे आरज़ू कोई मेरे दिल में मरती है
अतीक़ अंज़र
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तिरी शोख़ आँखों में बारहा कई ख़्वाब देखे हैं प्यार के
तिरा प्यार मेरा नसीब है किसी और को ये वफ़ा न दे
अतीक़ अंज़र
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तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में अगर जी लूँ मैं पल-दो-पल
न हो फिर ग़म जो मेरे नाम सहरा लिख दिया जाए
अतीक़ अंज़र
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तुझ से मिल कर भी उदासी नहीं जाती दिल की
तू नहीं और कोई मेरी कमी हो जैसे
अतीक़ अंज़र
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उसे देखने की थी आरज़ू मुझे उस की थी बड़ी जुस्तुजू
मगर उस के आरिज़-ए-नाज़ पे मिरी हर निगाह फिसल गई
अतीक़ अंज़र
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वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
उस को पढ़ना सवाब है प्यारे
अतीक़ अंज़र
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