ऐ शैख़ अगर कुफ़्र से इस्लाम जुदा है
पस चाहिए तस्बीह में ज़ुन्नार न होता
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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दिल-बस्तगी क़फ़स से यहाँ तक हुई मुझे
गोया कभी चमन में मेरा आशियाँ न था
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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जुगनू मियाँ की दुम जो चमकती है रात को
सब देख देख उस को बजाते हैं तालियाँ
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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कब दर्द से दिल को ताब आया
आँखों में कहाँ से ख़्वाब आया
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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मेरी तरफ़ से ख़ातिर-ए-सय्याद जमा है
क्या उड़ सकेगा ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर कहीं
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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मुझ से जो पूछते हो तो हर हाल शुक्र है
यूँ भी गुज़र गई मिरी वूँ भी गुज़र गई
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
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