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असग़र सलीम शायरी | शाही शायरी

असग़र सलीम शेर

3 शेर

ग़ुबार सा है सर-ए-शाख़-सार कहते हैं
चला है क़ाफ़िला-ए-नौ-बहार कहते हैं

असग़र सलीम




इस एक बात से गुलचीं का दिल धड़कता है
कि हम सबा से हदीस-ए-बहार कहते हैं

असग़र सलीम




जिसे कभी सर-ए-मिंबर न कह सका वाइज़
वो बात अहल-ए-जुनूँ ज़ेर-ए-दार कहते हैं

असग़र सलीम