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असर अकबराबादी शायरी | शाही शायरी

असर अकबराबादी शेर

13 शेर

फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार
क्या कहिए कितने ग़म हैं मिरी ज़िंदगी के साथ

असर अकबराबादी




है अजब सी कश्मकश दिल में 'असर'
किस को भूलें किस को रक्खें याद हम

असर अकबराबादी




हम हुए दश्त-ए-नवर्द फिर भी न देखा तुझ को
ज़िंदगी इतना बता दे तू कहाँ होती है

असर अकबराबादी




जो लोग डरते हैं रातों को अपने साए से
उन्हीं को दिन के उजालों में डरते देखा है

असर अकबराबादी




जुनूँ की ख़ैर हो तुझ को 'असर' मिला सब कुछ
ये कैफ़ियत भी ज़रूरी थी आगही के लिए

असर अकबराबादी




कितना मुश्किल है ख़ुद-बख़ुद रोना
बे-ख़ुदी से रिहा करे कोई

असर अकबराबादी




रास्ता रोक लिया मेरा किसी बच्चे ने
इस में कोई तो 'असर' मेरी भलाई होगी

असर अकबराबादी




साया भी साथ छोड़ गया अब तो ऐ 'असर'
फिर किस लिए मैं आज को कल से जुदा करूँ

असर अकबराबादी




उदास हो न तू ऐ दिल किसी के रोने से
ख़ुशी के साथ ग़मों को बिखरते देखा है

असर अकबराबादी