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अलीम अफ़सर शायरी | शाही शायरी

अलीम अफ़सर शेर

3 शेर

किराया-दार बदलना तो उस का शेवा था
निकाल कर वो बहुत ख़ुश हुआ मकाँ से मुझे

अलीम अफ़सर




सदाएँ जिस्म की दीवार पार करती हैं
कोई पुकार रहा है मगर कहाँ से मुझे

अलीम अफ़सर




तुयूर थे जो घोंसलों में पैकरों के उड़ गए
अकेले रह गए हैं अपने ख़्वाब के मकाँ में हम

अलीम अफ़सर