बदन के शहर में आबाद इक दरिंदा है
अगरचे देखने में कितना ख़ुश-लिबास भी है
अख़्तर अमान
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हमें हर आने वाला ज़ख़्म-ए-ताज़ा दे के जाता है
हमारे चाँद सूरज और सितारे एक जैसे हैं
अख़्तर अमान
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तमाम उम्र गुज़र जाती है कभी पल में
कभी तो एक ही लम्हा बसर नहीं होता
अख़्तर अमान
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