अपनी ही ज़ात के सहरा में आज
लोग चुप-चाप जला करते हैं
अहमद वसी
बरताव इस तरह का रहे हर किसी के साथ
ख़ुद को लिए दिए भी रहो दोस्ती के साथ
अहमद वसी
इन से ज़िंदा है ये एहसास कि ज़िंदा हूँ मैं
शहर में कुछ मिरे दुश्मन हैं बहुत अच्छा है
अहमद वसी
झूट बोलों तो गुनहगार बनों
साफ़ कह दूँ तो सज़ा-वार बनों
अहमद वसी
जो चेहरे दूर से लगते हैं आदमी जैसे
वही क़रीब से पत्थर दिखाई देते हैं
अहमद वसी
जो कहता था ज़मीं को मैं सितारों से सजा दूँगा
वही बस्ती की तह में रख गया चिंगारियाँ अपनी
अहमद वसी
जुदाई क्यूँ दिलों को और भी नज़दीक लाती है
बिछड़ कर क्यूँ ज़ियादा प्यार का एहसास होता है
अहमद वसी
लोग हैरत से मुझे देख रहे हैं ऐसे
मेरे चेहरे पे कोई नाम लिखा हो जैसे
अहमद वसी
में साँस साँस हूँ घायल ये कौन मानेगा
बदन पे चोट का कोई निशान भी तो नहीं
अहमद वसी