अजनबी लोग हैं मैं जिन में घिरा रहता हूँ
आश्ना कोई यहाँ मेरे फ़साने का नहीं
अहमद रिज़वान
एक मुद्दत से उसे देख रहा हूँ 'अहमद'
और लगता है अभी एक झलक देखा है
अहमद रिज़वान
होता न कोई कार-ए-ज़माना मिरे सुपुर्द
बस अपने कारोबार-ए-मोहब्बत को देखता
अहमद रिज़वान
क्या बात करूँ जो बातें तुम से करनी थीं
अब उन बातों का वक़्त नहीं क्या बात करूँ
अहमद रिज़वान
मुझे ये क्या पड़ी है कौन मेरा हम-सफ़र होगा
हवा के साथ गाता हूँ नदी के साथ चलता हूँ
अहमद रिज़वान
उड़ती है ख़ाक दिल के दरीचों के आस-पास
शायद मकीन कोई नहीं इस मकान में
अहमद रिज़वान
ये कौन बोलता है मिरे दिल के अंदरूँ
आवाज़ किस की गूँजती है इस मकान में
अहमद रिज़वान