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अहमद हुसैन मुजाहिद शायरी | शाही शायरी

अहमद हुसैन मुजाहिद शेर

2 शेर

अगर हों गोया तो फिर बे-तकान बोलते हैं
मगर ये लोग लहू की ज़बान बोलते हैं

अहमद हुसैन मुजाहिद




इक नई मंज़िल की धुन में दफ़अतन सरका लिया
उस ने अपना पाँव मेरे पाँव पर रक्खा हुआ

अहमद हुसैन मुजाहिद