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अबुल कलाम आज़ाद शायरी | शाही शायरी

अबुल कलाम आज़ाद शेर

2 शेर

बे-ख़ुद भी हैं होशियार भी हैं देखने वाले
इन मस्त निगाहों की अदा और ही कुछ है

अबुल कलाम आज़ाद




कोई नालाँ कोई गिर्यां कोई बिस्मिल हो गया
उस के उठते ही दिगर-गूँ रंग-ए-महफ़िल हो गया

अबुल कलाम आज़ाद