इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है
और इन की अदाओं में मज़ा और ही कुछ है
ये दिल है मगर दिल में बसा और ही कुछ है
दिल आईना है जल्वा-नुमा और ही कुछ है
हम आप की महफ़िल में न आने को न आते
कुछ और ही समझे थे हुआ और ही कुछ है
बे-ख़ुद भी हैं होशियार भी हैं देखने वाले
इन मस्त निगाहों की अदा और ही कुछ है
'आज़ाद' हूँ और गेसू-ए-पेचाँ में गिरफ़्तार
कह दो मुझे क्या तुम ने सुना और ही कुछ है
ग़ज़ल
इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है
अबुल कलाम आज़ाद