सच तो ये है कि नदामत ही हुई
राज़ की बात किसी से कह के
अब्दुल मजीद हैरत
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ये शबाब-ए-हुस्न ये हुस्न-ए-शबाब
हश्र तक उन पर यही आलम रहे
अब्दुल मजीद हैरत
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