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मुद्दतों देख लिया चुप रह के | शाही शायरी
muddaton dekh liya chup rah ke

ग़ज़ल

मुद्दतों देख लिया चुप रह के

अब्दुल मजीद हैरत

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मुद्दतों देख लिया चुप रह के
आओ कुछ उन से भी देखें कह के

इस तग़ाफ़ुल पे भी अल्लाह अल्लाह
याद आता है कोई रह रह के

है रवानी की भी हद इक आख़िर
मौज जाएगी कहाँ तक बह के

सच तो ये है कि नदामत ही हुई
राज़ की बात किसी से कह के