जैसी ज़िंदगी हम गुज़ारते हैं वैसी मौत हमें मिलती है
हम बुज़दिल आदमी की ज़िंदगी गुज़ारते हैं
तो हमें मौत भी वैसी ही बुज़दिल नसीब होती है
हम ख़ूबसूरत ज़िंदगी जीते हैं
तो मौत भी ख़ूबसूरत मिलती है
हम मोहब्बत की ज़िंदगी गुज़ारते हैं
तो मौत भी महबूबा की तरह हमें मिलती है
इंसान ने हर शय को गदला किया है
हर क़ीमती आदर्श को मैला किया है
हर लफ़्ज़ को बे-म'अनी किया है
अल्लाह की बनाई हुई चीज़ों को मस्ख़ करने की कोशिश की है
लेकिन इंसान मौत को गदला नहीं कर सका
मैला नहीं कर सका
बे-म'अनी नहीं कर सका
मस्ख़ नहीं कर सका
मौत से ज़्यादा ख़ालिस शय दुनिया में नहीं है
इस से ज़्यादा बा-मअ'नी शय मौजूद नहीं है
मगर मैं क्यूँ ऐसा कह रहा हूँ
मुझे तो एक बहुत ही ख़ूबसूरत ज़िंदगी बसर करनी है
मोहब्बत से लबरेज़
रक़्स करती हुई ज़िंदगी
जिस में रक़्क़ास ग़ाएब हो जाता है
और सिर्फ़ रक़्स बाक़ी रहता है
मुझे एक बेहद लज़्ज़त-भरी
रसीली ज़िंदगी से गले मिलना है
ताकि मेरी मौत भी ख़ूबसूरत हो
नज़्म
ज़िंदगी मौत का आईना
असग़र नदीम सय्यद