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ज़िंदगी के धारे | शाही शायरी
zindagi ke dhaare

नज़्म

ज़िंदगी के धारे

सय्यद ज़मीर जाफ़री

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उस किसान को देखो
ज़िंदगी के पत्थर से जिस्म टूटता हुआ

गाँव में
जिस के घर उदास हैं

हसरतों और आँसुओं के नम के ग़म निवास हैं
जा रहा है उस्तुख़्वान सर दर्द

इक जले बुझे होए ज़र्द ज़र्द गर्द गर्द रस्ते पर
उस का अलम लिए

जब्र में भी सब्र और सिपास के क़दम लिए
वक़्त सोया सोया है

ख़्वाब जागे जागे हैं
बैल आगे आगे हैं

किस क़दर अजीब चीज़ ज़िंदगी के धागे हैं